प्रोफेसर ललित तिवारी ने बताई कदली से जुड़ी परंपरा, नैनीताल में मनाया जाएगा 123वां मां नंदा सुनंदा महोत्सव

नैनीताल:::- श्री नंदा  देवी महोत्सव  नैनीताल में 1903 से आरंभ हुआ तथा 1918 में स्थापित श्री राम सेवक सभा 1926 से श्री  नंदा देवी महोत्सव का आयोजन करती आ रही है ।इस वर्ष नैनीताल में श्री राम सेवक सभा द्वारा 28 अगस्त से 5 सितंबर 2025 तक आयोजित किया जाएगा । उत्तराखंड की कुल देवी  मां नंदा सुनंदा का महोत्सव  धार्मिक मान्यता  ,सांस्कृतिक परंपराओं के साथ प्रकृति की महत्ता से भी जुड़ा हुआ है । मूर्ति निर्माण का आधार कदली जिसे हिंदी में केला कहा जाता है प्रकृति में बहुतायत से मिलता है तथा अपने आप में एक संपूर्ण  भी है । नयना देवी मंदिर में विराजमान होने वाली  कुमाऊं की अधिष्ठात्री देवी मां नंदा सुनंदा की मूर्ति  का आधार ही कदली है जिसे  लोक पारंपरिक कलाकारों द्वारा मूर्त रूप दिया जाता है और नंदाष्टमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में  मूर्ति की विधि  विधान के साथ  प्राण प्रतिष्ठा  की जाती है ।  केले के पेड़ में मां नंदा सुनंदा का वास है केले का पेड़ बेहद पवित्र होता है जिसमें पौराणिक मान्यता अनुसार  विष्णु  ,लक्ष्मी तथा श्रीगणेश का वास माना जाता है तथा कदली में देव गुरु बृहस्पति स्वयं विराजते है ।यह प्राकृतिक तथा पारिस्थितिक रूप से  गलनशील है तथा पानी के संपर्क में आते ही गल जाता है । कदली जिसे वैज्ञानिक नाम मूसा परडिसीएका  के नाम से जाना जाता है तथा ऋषि दुर्वासा द्वारा बनाया गया । कदली सुख ,समृद्धि ,खुशहाली  सहित मानवता को दर्शाता है । कदली का फल पाचक ,विटामिन ,फाइबर ,तथा पोटैशियम ,एंटी ऑक्सीडेंट से युक्त होता है तथा वजन एवं मस्तिष्क के लिए लाभ प्रदान करता है
मां नंदा सुनंद कुमाऊं के चंद राजवंश से जुड़ी हुई हैं. पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार मां नंदा सुनंदा के पीछे जब भैसा पड़ गया था तो उनकी रक्षा केले के पेड़ ने की थी तथा  केले की शुद्धता के कारण ही  मां की मूर्तियों का निर्माण केले से किया जाता है।  केले में ही नौ प्रकार की देवियों का स्वरूप भी माना जाता है तथा नवरात्र में नवपत्र भी इसी से बनाए जाते है तथा प्रसाद देने के काम भी आता है। इसकी शुद्धता के कारण ही दक्षिण में भोजन तथा अन्य खाद्य भी केले के पत्ते में दिया जाता है ।   2025   में जो नैनीताल में महोत्सव 123 वा वर्ष है इसे उस वर्ष चोपड़ा गांव  ज्योलिकोट से लाया जाएगा तथा उद्घाटन के दूसरे दिन कदली का नगर भ्रमण होगा जिसमें हर व्यक्ति महोत्सव में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर सके। इसके लिए स्वच्छ पर्यावरण में केले के पेड़ का होना जरूरी है साथ ही जिस पेड़ को लाया जाता है उसपे केले  के पेड़ में फल लगे नहीं होने चाहिए और उसकी पत्तियां भी कटी फटी नहीं होनी चाहिए. इसके बाद विधि विधान से कदली के वृक्ष की पूजा की जाती है तथा जहां से कदली लाई जाती है वह 21 पौधे जो यशपाल रावत द्वारा उपलब्ध कराए जाते है उन्हें वहां लगाया जाता है । प्रकृति के प्रति प्रेम उसके संरक्षण का संदेश देते मां का महोत्सव संस्कृति की अनूठी परंपरा है जिसमें हर नागरिक अपनी प्रतिभागिता सुनिश्चित करता है । कदली की परंपरा  मां के माध्यम से हम सबको प्रकृति के खजाने से जोड़ती है ।

Latest articles

Related articles

Leave a reply

Please enter your comment!
Please enter your name here

error: Content is protected !!