गुलाम भारत मे भारतीयों के मनोरंजन का साधन था अशोक सिनेमाहॉल – वन आंदोलन और नमक सत्याग्रह का साक्षी रह चुका है यह सिनेमाघर – 1948 में नगर पालिका ने एक लाख में खरीदा था सिनेमाहॉल

नैनीताल। अंग्रेजो की गुलामी और यातनाओं से लेकर आजादी तक के सफर के बीच सरोवर नगरी में अभिजात वर्गीय भारतीयों के मनोरंजन का भी खास ध्यान रखा जाता था। शहर स्थित अशोक सिनेमाहॉल इतिहास के कुछ ऐसे ही तथ्य बया करता है। यह सिनेमाहॉल आजादी के पहले से भारतीयों के मनोरंजन का अहम साधन हुआ करता था। इतना ही नहीं यह स्थल वन आंदोलन, नमक सत्याग्रह और कई जनांदोलनों का भी गवाह रहा है। टेलीविजन के बाद मोबाइल व अब इंटरनेट पर उपलब्ध ओटीटी प्लेटफार्म पर तमाम मनोरंजक साधनों ने इसकी जरूरत को खत्म कर दिया। साथ ही शहर में बढ़ते पर्यटन कारोबार और मौजूदा जरूरत के मुताबिक यह ऐतिहासिक स्थल महज पार्किंग बनकर रह गया है।


सरोवर नगरी का अपना गौरवान्वित इतिहास रहा है। शहर की खोज के बाद से ही ब्रिटिश हुक्मरानों ने इस शहर को अपनी ऐशगाह के रूप में विकसित किया। जिसके लिए उन्होंने यहां सुख सुविधाओं के साधनों के साथ ही लोगों के मनोरंजन का भी ध्यान रखते हुए कई संसाधन जोड़ें। आजादी से पहले अंग्रेजों ने शहर में चार सिनेमाघर स्थापित किये। इतिहासकार प्रोफेसर अजय रावत बताते हैं कि आजादी से पूर्व शहर के मल्लीताल में कैपिटल, अशोक के अलावा मालरोड में नॉएल्टी व रॉक्सी सिनेमा हॉल हुआ करते थे। जिसमें से मल्लीताल स्थित अशोक सिनेमाघर खास भारतीयों के लिए था। जहां अन्य सिनेमाघरों में अंग्रेज और अभिजात वर्ग को ही जाने की अनुमति थी, वहीं अशोक सिनेमाघर में हिंदी फिल्में प्रदर्शित की जाती थी। जहां भारतीय मनोरंजन किया करते थे।
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वन आंदोलन, सत्याग्रह और तमाम जन आंदोलनों के गवाह रहा है
अशोक सिनेमाहॉल
प्रोफेसर अजय रावत बताते हैं कि अशोक सिनेमाघर व उसके आसपास का क्षेत्र स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हुए जन आंदोलनों का भी प्रतीक रहा है। इस दौरान हुए कई आंदोलन और सम्मेलनों के लिए लोग इस स्थल पर एकत्रित होते थे। 1921 का वन आंदोलन हो या 1929 का नमक सत्याग्रह दोनो ही आंदोलनों में नैनीताल वासियों की अहम भूमिका रही। इन आंदोलनों के लिए जन सैलाब इसी स्थान पर उमड़ा था। आजादी से पूर्व यहां कई प्रकार के व्याख्यान भी हुआ करते थे।
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1948 में एक लाख में नगर पालिका ने खरीदा था सिनेमाघर
आजादी से पूर्व अंग्रेजों के संरक्षण में ही अशोक सिनेमाघर का संचालन किया जाता था। 1947 देश आजाद हुआ और अंग्रेजो के चले जाने के बाद शहर की तमाम संपत्तिया गवर्नर ऑफ जनरल के अधीन चली गयी। जिसमें अशोक सिनेमाहॉल भी शामिल था। 1948 में पालिका द्वारा यह हॉल एक लाख की राशि मे खरीदा गया था। मगर तब इसका नाम नैनी सिनेमाहाल हुआ करता था।
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सिनेमाघर से पार्किंग बनने का यह रहा सफर
भारतीयों के लिए बनाया गया यह सिनेमाघर काफी आलीशान हुआ करता था। 1948 में पालिका द्वारा खरीदने के दौरान इसमें 250 आधुनिक कुर्सियों के साथ ही एसी पंखे और अन्य सुविधाएं हुआ करती थी, लेकिन लीज में जाने के बाद इसकी दुर्दशा होती चली गयी। शुरुआत से ही अशोक सिनेमा घर लीज पर चल रहा था। जिसके एवज में पालिका को बहुत ही कम आय हुआ करती थी। पालिका ने लीज खत्म करने की कवायद की तो 1994 में लीजधारक कोर्ट पहुँच गया, लेकिन इसी वर्ष दोनों में समझौता हो गया और केस वापस लेते हुए इसे फिर लीज पर दे दिया गया। जिसमें 20 हजार रुपये सालाना में 10 वर्ष के लिए लीज पर दिए जाने के लिए अनुबंध हुआ। 2004 में लीज खत्म करने को लेकर पालिका आरबेटेशन के लिए कमिश्नर के पास पहुँच गयी। जहां से हॉल को ओपन टेंडर के तहत लीज पर दिए जाने का फैसला सुनाया गया। जिसके बाद लीजधारक फिर जिला कोर्ट पहुँच गया। कोर्ट से दोबारा सुनवाई के आदेश हुए तो पालिका अपील के लिए हाईकोर्ट पहुँच गयी। 2010 में पालिका बोर्ड में हॉल को अत्याधुनिक बनाने का प्रस्ताव रखा गया। जिसके बाद 2015 में पालिका और निमिष साह के बीच अनुबंध हुआ कि पुराने भवन को तोड़ उसकी जगह पर सिनेमाहॉल, पार्किंग और कैफेटेरिया बनाया जाएगा। अनुबंध के अनुसार सात लाख रुपये सालाना लीजधारक को पालिका को देना होगा और निर्माण संबंधित नक्शा तीन माह पेश कर संबंधित संस्था से पास कराना होगा। अनुबंध होने के बाद लीजधारक द्वारा हॉल के ऐतिहासिक भवन को तोड़ तो दिया गया, लेकिन तय समय पर निर्माण का नक्शा पेश नहीं किया गया। 2018 से लीजधारक ने उक्त स्थान पर पार्किंग चलाना शुरू कर दिया। जिसके एवज में पालिका को सालाना महज 20 हजार की आय हो रही थी। बेहद कम आमदनी और लीज अनुबंद की शर्तों का पालन नहीं होने पर 2020 में नगर पालिका ने लीज निरस्त करने को जिला प्रशासन से पत्राचार किया। इस बीच तत्कालीन डीएम सविन बंसल ने शासन को लीज निरस्त करने प्रस्ताव भेजा। डीएम की रिपोर्ट पर अक्टूबर 2018 में शासन ने 2015 में हुई लीज को निरस्त कर दिया। जिसके बाद पालिका ने भूमि को कब्जे में लेकर स्वयं पार्किंग संचालन शुरू कर दिया। जिसके बाद लीजधारक प्रत्यावेदन लेकर हाईकोर्ट चला गया। मगर इस बीच नगर पालिका ही पार्किंग का संचालन करती रही। कोर्ट से 2023 में मामले में पालिका स्तर पर निर्णय लिए जाने के आदेश हुए। करीब ढाई वर्ष स्वयं संचालन के बाद 2023 में पालिका बोर्ड ने बिना ओपन टेंडर 35 हजार प्रतिमाह की दर पर पार्किंग का ठेका दोबारा पुराने लीज धारक को दे दिया। इसी वर्ष नंदा देवी महोत्सव के मेला टेंडर का मामला भी हाईकोर्ट पहुँचा तो पालिकाध्यक्ष की शक्तियां सीज करने के साथ ही ईओ को सस्पेंड कर दिया। नतीजतन बोर्ड का कार्यकाल समाप्त होने से पूर्व ही पालिका प्रशासक के हवाले हो गयी। प्रशासक की अध्यक्षता में हुई बोर्ड बैठक में अशोक पार्किंग को ओपन टेंडर के माध्यम से ठेके पर देने का मुद्दा जोर शोर से उठा। प्रस्ताव पर मुहर लगी तो लीजधारक फिर हाईकोर्ट की शरण मे पहुँच गया। कोर्ट ने लीजधारक के प्रत्यावेदन पर विचार कर दोबारा पालिका स्तर पर निर्णय लिए जाने के निर्देश दिए। 2024 जनवरी और फरवरी में नगर पालिका ने लीज धारक को नोटिस जारी कर बैठक कर उसके प्रत्यावेदनों को सुना। प्रत्यावेदन पर विचार बैठक में अस्थाई और बिना ओपन टेंडर से हुए ठेके से पालिका को मासिक 1.55 लाख का नुकसान, 2010 के शासनादेश, उत्तराखंड अधिप्राप्ति निवामावली 2017 के उल्लंघन समेत उत्तराखंड राज्य पार्किंग नियमावली 2022 का अनुपालन नहीं होने पर पालिका ने सात फरवरी को ठेका निरस्त कर दिया। पालिका ने पार्किंग हस्तगत करने का नोटिस दिया तो ठेकेदार फिर हाईकोर्ट पहुँच गया। 13 फरवरी को कोर्ट ने फिर पालिका को स्वयं के स्तर पर निर्णय लेते हुए बेहतर पार्किंग निर्मित करने के निर्देश दिए। जिसके बाद पालिका ने अशोक सिनेमाहॉल भूमि पर पार्किंग संचालन की ओपन टेंडर प्रक्रिया शुरू कर इसे हाईटेक पार्किंग बनाने की कवायद शुरू कर दी है।

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